Friday 29 April 2016

Preliminary Draft विधान: श्री जैन श्वेताम्बर खरतर गच्छ अंतर्राष्ट्रीय महासंघ

Preliminary Draft  

विधान: श्री जैन श्वेताम्बर खरतर गच्छ अंतर्राष्ट्रीय महासंघ





१. संस्था का नाम
इस संस्था का नाम श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ अंतर्राष्ट्रीय महासंघ है व रहेगा।

२.  इसका पंजीकृत मुख्यालय ......... में है भविष्य में इस स्थान में परिवर्तन किया जा सकेगा।  मुख्यालय के अतिरिक्त अन्य शाखा कार्यालय भी हो सकती है जिसके सम्वन्ध में निर्णय करने का पूर्ण अधिकार कार्यकारिणी समिति को होगा।
(भारत में संभावित शाखाएं: दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बंगलुरु, जयपुर, इंदौर, रायपुर आदि. इसके अतिरिक्त विदेशों में भी इसकी शाखाएं हो सकती है.) यह विधान का हिस्सा नहीं है.

३. यह महासंघ खरतर गच्छ के स्थानीय/क्षेत्रीय संघों का समूह होगा और यह विश्व भर के खरतर गच्छ की प्रतिनिधि संस्था होगी.

३क. जैन समाज को भारत सरकार द्वारा धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्ज़ा दिया गया है. यह महासंघ भी  जैन समाज की ही एक धार्मिक/ सामाजिक संस्था है अतः इस संस्था को अल्पसंख्यक संस्थाका दर्ज़ा प्राप्त होगा।

४. अखिल भारतीय खरतर गच्छ युवा परिषद इसकी युवा शाखा होगी एवं अखिल भारतीय खरतर गच्छ महला परिषद इसकी महिला शाखा।

संस्था का उद्देश्य

इस महासंघ के निम्नलिखित उद्देश्य हैं एवं रहेंगे

१. खरतर गच्छ एवं इस गच्छ के साधु-साध्वी व श्रावक-श्राविकाओं के सर्वांगीण विकास के लिए यह संस्था समर्पित रहेगी। साथ ही जैन तीर्थ, मंदिर, दादाबाड़ी, उपाश्रय, ज्ञान भंडार, उपासनागृह, व्याख्यानशाला, आयम्बिलशाला, धर्मशाला, भोजनशाला, महिला आश्रम, वृद्धाश्रम, अनाथालय, पुस्तकालय, विद्यालय, महाविद्यालय, विश्व विद्यालय, चिकित्सालय, उद्योगशाला, प्याऊ, जीवदया के निमित्त स्थान आदि धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं विशेष कर खरतर गच्छ की संस्थाओं के निर्माण, विकास, जीर्णोद्धार,  सञ्चालन, रखरखाव, देखभाल आदि करवाना, करना एवं सहयोग करना।

२. खरतर गच्छ तीर्थंकर भगवन्तों द्वारा प्ररूपित जैन धर्म की ही एक प्राचीन शाखा है अतः यह महासंघ जिन शासन के सर्वांगीण विकास के प्रति भी सजग एवं सक्रिय रहेगा। जिन शासन की प्रभावना इसका मुख्य उद्देश्य रहेगा।

३. चतुर्विध संघ विशेष कर साधु-साध्विओं के वैयावच्च की व्यवस्था करना। इसके लिए साधु-साध्विओं के अध्ययन की व्यवस्था करना, बिहार की व्यवस्था करना, बीमारी में इलाज करवाना, वृद्ध साधु-साध्विओं के ठाणापति रहने की एवं अन्य व्यवस्था करना आदि करवाना, करना एवं सहयोग करना।

४. देश, समाज, प्राणी मात्र के हित में कार्य करना, करवाना एवं सहयोग देना

५. समाजोपयोगी शिक्षण संस्थाएं, अस्पताल, क्लिनिक एवं अन्य उपयोगी संस्थाओं आदि की स्थापना करना,  निर्माण, विकास, जीर्णोद्धार, रखरखाव, देखभाल एवं सञ्चालन आदि करवाना, करना एवं सहयोग करना।

६ जैन शास्त्रों में वर्णित सात क्षेत्रों एवं जीवदया का कार्य करना एवं उसके लिए संस्थाओं आदि की स्थापना करना,  निर्माण, विकास, जीर्णोद्धार, रखरखाव, देखभाल एवं सञ्चालन आदि करवाना, करना एवं सहयोग करना।
७.  धार्मिक, दार्शनिक एवं अन्य उपयोगी साहित्य विशेषकर खरतर गच्छ परंपरा के प्राचीन ग्रंथों का सृजन, संरक्षण, प्रकाशन, वितरण आदि करना एवं इन कार्यो में सहयोग करना, पांडुलिपियों, शिलालेखों, ताम्रपत्रों आदि का संरक्षण आदि करवाना, करना एवं सहयोग करना।

८. जैन धर्म एवं आनुषंगिक विषयों के अध्ययन, अध्यापन, अनुवाद, संकलन, शोध, प्रकाशन, प्रचार, वितरण आदि कार्य करना, करवाना एवं सहयोग प्रदान करना विशेष कर जैन धर्म के वैज्ञानिक अध्ययन एवं अनुसन्धान के कार्य में सहयोग करवाना, करना।

९ साधु साध्वी भगवंतों में परष्पर एवं समाज के विभिन्न अंगों में समन्वय बनने का प्रयास करना जिससे गच्छ में एकता, शांति एवं सौहार्द का वातावरण बना रहे

१०. समय समय पर पूज्य गच्छाधिपति, पदासीन एवं अन्य साधु-साध्वी भगवन्तो व संघ के वरिष्ठ श्रावक/ श्राविकाओं से गच्छ एवं संघ हित में मार्गदर्शन प्राप्त करना, करवाना

११ संघ के साधु साध्वी भगवंतों के सम्यग दर्शन-ज्ञान- चरित्र की वृद्धि में सहयोग करना, करवाना

१२. संघ के गृहस्थों के आध्यात्मिक, चारित्रिक, नैतिक, मानसिक, शैक्षणिक, शारीरिक, आर्थिक उत्थान में सहयोग करना एवं उसके लिए विशेष कार्य योजना बना कर उसपे कार्य करना, करवाना। महिलाओं, युवा वर्ग के लिए एवं कमजोर वर्ग/ दिव्यांगों के लिए विशेष रूप से कार्य करना, करवाना, सहयोग करना

१३. श्री जैन श्वेताम्बर खरतर गच्छीय परम्पराओं की पालना, रक्षा, संवर्धन, प्रचार-प्रसार आदि करवाना, करना एवं सहयोग करना।

१४. महासंघ के उद्देश्यों की पूर्ती के लिए नवीन संस्थाएं खोलना, खुलवाना, सहयोग करना; उनका सञ्चालन एवं व्यवस्था करना, करवाना एवं सहयोग करना

१५. उपरोक्त कार्यों को करने के लिए, संस्था को आर्थिक सम्बल प्रदान करने के लिए दान, सहयोग, शुल्क आदि के रूप में धन संग्रह करना, संग्रहीत धन का उचित रूप से विनियोजन करना, चल अचल संपत्ति खरीदना, खरीदवाना, खरीदने में सहयोग करना, किराए/लीज  पर लेना या देना, क्रय-विक्रय करना, वन्धक रखना, बदले में लेना या देना, व अन्य प्रकार से हस्तांतरित करना, करवाना, सहयोग करना,

१६. एक अथवा अधिक बैंकों में कहते खोलना, चालू रखना, धन जमा करना, निकालना, लॉकर्स लेना आदि,

१७. महासंघ के हित में  हुंडी, प्रोमिसरी नोट, आदि लिखना, लिखवाना, मंजूर करना, चालू करना, हस्तांतरण करना

१८. महासंघ की नगद राशि का समय समय पर बैंकों, सरकारी प्रतिभूतियों या अन्य प्रतिष्ठानों में विनियोजित करना/करवाना

१९. महासंघ का पंजीकरण करवाने के लिए कार्य करना व उससे सम्वन्धित धन व्यय करना

२०. उपरोक्त उद्देश्यों एवं उनसे सम्वन्धित सभी प्रकार के उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए कार्य करना, करवाना, सहयोग करना व सहयोग लेना.  ये सभी उद्देश्य अपना भिन्न भिन्न अस्तित्व रखेंगे और कोई भी एक दूसरे का पूरक या अवलम्बित नहीं समझा जायेगा।

२१. यह महासंघ खरतर गच्छ संघों की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि संस्था है अतः मुख्य रूप से इस महासंघ का कार्य खरतर गच्छ संघों के द्वारा कार्य करवाना एवं उसमे सहयोग देना रहेगा। स्थानीय/ क्षेत्रीय महत्व के कार्य स्थानीय/ क्षेत्रीय संघों द्वारा हो इसका ध्यान रखा जायेगा परन्तु  राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्व के कार्य करने एवं करवाने में महासंघ की विशेष भूमिका रहेगी।

 श्री जैन श्वेताम्बर खरतर गच्छ अंतर्राष्ट्रीय महासंघ का विधान 

१. संस्था का नाम
इस संस्था का नाम श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ अंतर्राष्ट्रीय महासंघ है व रहेगा। जिसे आगे "महासंघ" के नाम से सम्वोधित किया जायेगा।

पंजीकृत मुख्यालय

२.  इसका पंजीकृत मुख्यालय ......... में है भविष्य में इस स्थान में परिवर्तन किया जा सकेगा।  मुख्यालय के अतिरिक्त अन्य शाखा कार्यालय भी हो सकती है जिसके सम्वन्ध में निर्णय करने का पूर्ण अधिकार कार्यकारिणी समिति को होगा।

३. पंजीकृत कार्यालय का पूरा पता

४. महासंघ के उद्देश्य

इस विधान के पृष्ठ १ से ..... तक वर्णित उद्देश्य हैं व रहेंगे। इस विधान में जहाँ भी महासंघ शब्द प्रयुक्त हुआ है उससे तात्पर्य "श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ अंतर्राष्ट्रीय महासंघ" से है.


संस्था की सदस्यता

१. महासंघ की सदस्यता चार प्रकार की होगी।  १. संस्थापक २. संरक्षक ३. मनोनीत ४. प्रतिनिधि

२. कोई भी स्थानीय/क्षेत्रीय खरतर गच्छ संघ इस महासंघ का सदस्य बन सकता है जिसके लिए उसे निर्धारित प्रपत्र पर आवेदन करना होगा। आवेदन पत्र की जांच के बाद कार्यकारिणी समिति की स्वीकृति से सदस्य बन सकेंगे। ऐसे संघों के प्रतिनिधि संस्था के सदस्य के रूप में काम करेंगे।

३. जिस स्थान पर खरतर गच्छ संघ नहीं होगा वहां जैन श्वेताम्बर संघ अथवा मूर्तिपूजक/ देहरावासि संघ सदस्य बन सकेंगे। इन संघों के केवल खरतर गच्छ आम्नाय माननेवाले प्रतिनिधि ही सदस्य के रूप में कार्य कर सकेंगे।  इन सभी संस्थाओं की सदस्यता अस्थायी (३ वर्ष के लिए) होगी एवं अस्थायी सदस्यता अवधि समाप्त होने पर उन्हें पुनः सदस्यता के लिए आवेदन करना पड़ेगा. उस स्थान पर खरतर गच्छ संघ बन् जाने पर एवं उनके महासंघ के सदस्य बन जाने पर पूर्वोक्त अस्थायी सदस्यों की सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाएगी।

४. जिस स्थान पर संघ के स्थान पर किसी मंदिर/ दादाबाड़ी, तीर्थ आदि का ट्रस्ट/ संस्था प्रभावशाली एवं बड़े जनसँख्या का प्रतिनिधित्व करती होगी उस स्थान पर उक्त ट्रस्ट/ संस्था को भी सदस्य बनाया जा सकता है. सभी प्रकार की सदस्यता के लिए कार्यकारिणी की स्वीकृति आवश्यक होगी जो की विधिवत जांच कर ही किसी संस्था/ संघ/ ट्रस्ट/सोसाइटी आदि को सदस्य बनाएगी.

५. सदस्य संस्थाएं अपने सदस्यों की संख्या के अनुसार अपने प्रतिनिधि महासंघ के लिए मनोनीत कर सकेंगे.  यह संख्या निम्न प्रकार से होगी:-
सदस्य संख्या            प्रतिनिधियों की संख्या
१ से ५० तक                 १
५० से १०० तक             २
१०० से २०० तक           ३
२०० से ५०० तक           ४
५०० से १००० तक         ६
१००० से २००० तक      ८
२००० से अधिक          १०

६. प्रतिनिधि सदस्यों के अतिरिक्त समाज के गणमान्य वर्ग, विद्वान, समाजसेवी, प्रमुख राजसेवक, कलाकार, वैज्ञानिक आदि में से १० व्यक्तियों को मनोनीत करने का अधिकार कार्यकारिणी को होगा जिनका कार्य काल कार्यकारिणी की अवधि तक होगा। इन सभी मनोनीत सदस्यों को भी प्रतििनिधि सदस्यों के समान अधिकार प्राप्त होंगे।

७. महासंघ की संस्थापना के समय हस्ताक्षर करनेवाले सदस्य इसके संस्थापक सदस्य, एक मुस्त ११ लाख रुपये की राशि प्रदान करनेवाले संरक्षक सदस्य होंगे।

८. संस्थापक एवं मनोनीत सदस्यों का कोई शुल्क देय नहीं होगा। प्रतिनिधि सदस्यों के लिए प्रति प्रतिनिधि रुपये ........ तीन वर्ष के लिए देय होंगे।

सदस्यों की सदस्यता से मुक्ति

१. सदस्यता से त्याग पत्र देने पर

२. प्रतिनिधि सदस्यों की आधिकारिक संस्था द्वारा उसे प्रतिनिधि के तौर पर हटाए जाने पर

३. मनोनीत सदस्यों को उनके मनोनयन करनेवाले व्यक्ति/संस्था द्वारा मनोनयन रद्द करने पर

४. सदस्यता शुल्क का भुगतान न करने पर

५. संघ के हित के विरुद्ध कार्य करने पर

६. सदस्य के देहांत, न्यायलय द्वारा पागल या दिवालिया घोषित होने पर

सदस्यों के कर्तव्य व अधिकार

१. महासंघ की सभाओं में उपस्थित होना, महासंघ की प्रवृत्तियों में भाग लेना, महासंघ के हित में कार्य करना, प्रेरणा देना व सहयोग करना

२. उपयोगी प्रस्ताव देना एवं प्रस्तावित विषयों की विवेचना करना,

३.  महासंघ  प्रकार का सहयोग व परामर्श देना

४. विधान के अनुसार किसी पद के लिए नामांकन भरना, चुनाव लड़ना आदि

५. महासंघ की कार्यवाही के संवंध में जानकारी प्राप्त करना

६. साधारण सभा द्वारा स्वीकृत प्रस्ताव की अवहेलना नहीं करना परन्तु उसकी पूर्ती हेतु कार्य करना एवं उसमे सहयोग करना

आर्थिक वर्ष

महासंघ का आर्थिक वर्ष १ अप्रैल से प्रारम्भ हो कर अगले वर्ष के ३१ मार्च तक का होगा। महासंघ के सभी हिसाब किताब इसी आर्थिक वर्ष के अनुसार रखे जायेंगे।

साधारण सभा एवं उसकी बैठक 

१. सभी चार प्रकार के सदस्यों की सम्मिलित सभा महासंघ की साधारण सभा कहलाएगी। साधारण सभा की बैठक वर्ष में कम से कम एक बार बुलाना अनिवार्य होगा। इसे वार्षिक साधारण सभा कहा जायेगा। इसके अतिरिक्त भी साधारण सभा की बैठक बुलाई जा सकती है।

२.  वार्षिक साधारण सभा में निम्नलिखित विषयों को रखना अनिवार्य होगा

अ.   महासंघ का वार्षिक प्रतिवेदन
आ.  आगामी वर्ष की कार्ययोजना
इ.    आगामी वर्ष का वार्षिक बजट
ई.    गत वर्ष के अंकेक्षित आय व्यय के आंकड़े एवं तुलापत्र
उ.    अंकेक्षक की नियुक्ति एवं उसका शुल्क तय करना

३. साधारण सभा को किसी भी समय २१ दिन की पूर्व सुचना देकर बुलाया जा सकता है किसी विशेष परिस्थिति में किसी निर्धारित विषय / विषयों पर अध्यक्ष एवं कम से कम तीन कार्यकारिणी सदस्यों की सहमति से ७ दिन की सुचना पर भी साधारण सभा की बैठक मंत्री द्वारा आहूत की जा सकेगी। किसी असाधारण परिस्थिति में यह असाधारण सभा तीन दिन की पूर्व सुचना पर भी बुलाई जा सकेगी।

४. आवेदित बैठक

किसी निश्चित व विशेष विषय पर विचार विमर्श व निर्णय हेतु कम से कम २१ सदस्यों के हस्ताक्षर सहित लिखित आवेदन प्राप्त होने पर कार्यकारिणी के निश्चयानुसार तत्संवन्धी बैठक महासंघ के मंत्री २१ दिनों के अंदर बुलाएँगे। यदि २१ दिन के अंदर मंत्री बैठक नहीं बुलाते हैं तो हस्ताक्षरकर्ता महासंघ के  अनुसार सुचना दे कर उस हेतु साधारण सभा की बैठक बुला सकेंगे।

५. कोरम 

साधारण सभा का कोरम कुल सदस्य संख्या का एक चौथाई या ३१ सदस्यों (जो भी कम हो)  का होगा।  कोरम पूरा न होने पर साधारण सभा की बैठक स्थगित की जाएगी। इस हेतु निर्धारित समय से एक घंटे बाद तक इंतज़ार किया जायेगा उसके बाद सभा स्थगित की जाएगी।  साधारण सभा की बैठक स्थगित होने पर अगले दिन उसी समय उसी स्थान पर उसी विषय पर स्थगित साधारण सभा आयोजित की जाएगी जिसका कोरम निर्धारित कोरम से आधा होगा। स्थगित सभा में मूल सभा के अजेंडा के अनुसार ही कार्यसूची होगी उसे बदला नहीं जा सकेगा।

साधारण सभा की सुचना

साधारण सभा की बैठक की सुचना प्रत्येक सदस्य को डाक/ ई-मेल या अन्य कोई विश्वसनीय माध्यम से देना अनिवार्य होगा। यह अपेक्षा की जाती है की प्रत्येक सदस्य को यह सुचना समय से मिले इसे सुनिश्चित किया जायेगा। सभी सदस्यों से भी यह अपेक्षा की जाती है की वे अपना पता, ई-मेल, मोबाईल एवं फोन नंबर अद्यतन रखें एवं इसमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन होने पर महासंघ कार्यालय को सूचित करें।

कार्यकारिणी समिति एवं उसकी बैठक

१. सभी पदाधिकारी सहित ५१ सदस्यों की समिति महासंघ की कार्यकारिणी समिति कहलाएगी। महासंघ के सभी प्रकार के कार्य का उत्तर दायित्व  कार्यकारिणी का होगा। महासंघ के पदाधिकारी एवं सभी उप-समितियां अपने सभी कार्यों के लिए कार्यकारिणी के प्रति उत्तरदायी होंगे।

इस समिति की बैठक साल में काम से काम ३ बार आयोजित करना अनिवार्य होगा एवं एक बैठक से दूसरे का अंतर ६ महीने से अधिक नहीं होगा.

२. अपने कार्यों/दायित्व को सुचारु रूप से संपन्न करने के लिए कार्यकारिणी समिति को उप-समितियां बनाने  का अधिकार होगा। इन समितियों में  कार्यकारिणी समिति के सदस्यों के अतिरिक्त, प्रयोजन अनुसार बाहर के सदस्य भी विशेष आमंत्रित सदस्यों के रूप में लिए जा सकेंगे परन्तु इन्हे मताधिकार प्राप्त नहि होगा.

१. कार्यकारिणी का कार्यकाल तीन वर्ष का होगा जिसे साधारण सभा १ वर्ष तक की अवधि के लिए बढ़ा सकती है. चुनाव पश्चात नई कार्यकारिणी का गठन होगा जिसमे चुने हुए, मनोनीत सभी सदस्य होंगे. जब तक नई कार्यकारिणी का गठन नहीं होता तब तक पुरानी कार्यकारिणी कार्य करती रहेगी. नई कार्यकारिणीगठित होने पर पुराणी कार्यकारिणी अपना कार्यभार उसे सौंप देगी।

२. कार्यकारिणी का कोरम १५ सदस्यों का होगा कोरम पूरा न होने पर अगले दिन उसी समय उसी स्थान पर कार्यकारिणी की बैठक होगी जिसका कोरम १० सदस्यों का होगा. स्थगित सभा का एजेंडा पूर्ववत ही रहेगा उसमे किसी भी प्रकार का फेरबदल नहीं किया जायेगा.

३. कार्यकारिणी को अलग अलग विषयों या कार्य के लिए उपसमितियां गठित करने का अधिकार होगा जिनमे कार्यकारिणी के अतिरिक्त साधारण सदस्यों अथवा बहार के सदस्यों को भी सन्मिलित किया जा सकेगा. कार्यकारिणी का कार्यकाल समाप्त होने पर पुराणी उपसमितियों का कार्यकाल भी स्वतः समाप्त हो जायेगा.

४. किसी भी सदस्य की सदस्यता समाप्त होने पर कार्यकारिणी उसकी जगह नए सदस्य नियमानुसार चुन सकेगी।

५. कार्यकारिणी अपनी सभा में सर्वसम्मति बनने का प्रयास करेगी सर्वसम्मति नहीं होने पर सभी प्रस्ताव बहुमत से पारित होंगे.

६.  कार्यकारिणी को अपनी सभा की कार्यवाही का विवरण नियमानुसार कार्यवाही पंजिका में दर्ज़ करना होगा।

७. कार्यकारिणी समिति के अध्यक्ष सामान्यतः बैठक की अध्यक्षता करेंगे उनकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्षों में से किसी को सभा अपना अध्यक्ष चुन लेगी। यदि कोई भी उपाध्यक्ष सभा में न हो तो उपश्थित सदस्य अपने में से किसी सदस्य को सभा का अध्यक्ष चुन कर सभा की कार्यवाही चलाई जाएगी.

८. कार्यकारिणी की बैठक की सुचना सामान्यतः १० दिन पूर्व एवं विशेष परिस्थिति में ५ दिन पूर्व दी जा सकेगी. सुचना देने का प्रारूप साधारण सभा जैसा ही होगा।

९. कार्यकारिणी की सभा वर्ष में कम से कम ३ बार करना अनिवार्य होगा. एक सभा से दूसरे के बीच का अंतर ६ माह से अधिक नहीं होगा।


कार्यकारिणी के कर्तव्य व अधिकार

 महासंघ के समस्त कार्य की जिम्मेदारी कार्यकारिणी की होगी।  कार्यकारिणी महासंघ के उद्देस्यों की पूर्ती के लिए एवं कार्यसम्पादन के लिए सतत प्रयासरत रहेगी। कार्यकारिणी के कर्त्तव्य व अधिकार निम्नरूप रहेंगे

१. महासंघ का कार्य संचालन के लिए समय समय पर नियम-उपनियम बनाना

२. महासंघ एवं उसके अधीनस्थ संस्थाओं के लिए वैतनिक कर्मचारियों की नियुक्ति करना, उनके कार्यकाल, वेतनमान आदि तय करना, उन पर दण्डात्मक कार्यवाही करना, पुरष्कृत करना, पदोन्नत एवं पदावनत करना, विभागों में फेरबदल करना, स्थानांतरित करना, पदमुक्त करना आदि

३.   महासंघ एवं अधीनस्थ संस्थाओं की समस्त चल-अचल संपत्तियों की देख रेख व उचित प्रवन्ध करना, अचल संपत्ति की मरम्मत के लिए राशि निर्धारित करना, अचल संपत्ति को लीज या किराए पर देना, संपत्ति का हस्तांतरण करना, अचल संपत्ति की रजिस्ट्री आदि करना

४. महासंघ की और से सभी प्रकार की आवश्यक कानूनी कार्यवाही करना, मुकद्दमा दर्ज़ करना, उसकी पैरवी करना, एवं उक्त सभी कार्यों के लिए आवश्यक व्यवस्था करना व उससे सम्वन्धित व्यय करना

५. महासंघ का वार्षिक अधिवेशन एवं साधारण सभा बुलाने की स्वीकृति प्रदान करना एवं उसके लिए स्थान व समय का निर्धारण करना

५ अ. सभी प्रकार के खर्चों का बजट बनाना एवं उसे पारित कर साधारण सभा के वार्षिक अधिवेशन में अनुमोदन हेतु प्रस्तुत करना

६. साधारण सभा द्वारा स्वीकृत बजट के अनुसार व्यय करना। बजट के अतिरिक्त ५ लाख रुपये तक के व्यय करने का अधिकार कार्यकारिणी को होगा। साधारण सभा के वार्षिक अधिवेशन में यह राशि संशोधित की जा सकेगी एवं उसके पश्चात संशोधित राशि के व्यय का अधिकार होगा।

७. यदि किसी विशेष कार्य के लिए कोई विशेष दानदाता उपलब्ध हों तो बजट के अतिरिक्त राशि खर्च करने का अधिकार कार्यकारिणी को होगा।

८. महासंघ की अचल संपत्ति का आवश्यकतानुसार निर्माण, परिवर्तन, परिवर्धन करना एवं महासंघ में वर्णित उद्देश्य ( ) के अनुसार खरीदना, बेचने, लीज/किराए पर देना आदि. परन्तु अचल संपत्ति बेचने से पूर्व साधारण सभा से उसकी स्वीकृति लेना अनिवार्य होगा।

९. महासंघ की ओर से उद्देश्य (  )  में वर्णित तरीके से बैंकों आदि में खाते खोलना, लॉकर्स लेना,  सञ्चालन करना आदि. इनके सञ्चालन हेतु अध्यक्ष, मंत्री में से कोई एक एवं कोषाध्यक्ष संयुक्त रूप से अधिकृत होगे.

१०. कार्यकारिणी समय समय पर आवश्यकतानुसार निश्चित कार्य हेतु अपने अधिकार किसी उपसमिति/उपसमितियों को अथवा किसी व्यक्ति/व्यक्तियों को को सौंप सकेगी ऐसे अधिकृत व्यक्ति या उपसमिति द्वारा किया हुआ कार्य कार्यकारिणी द्वारा किया हुआ कार्य माना जाएगा।

११. सभी न्यायालयों, सरकारी-अर्ध सरकारी विभागों, स्थानीय निकायों आदि से सम्वन्धित कार्य करना, दस्तावेज बनवाना, उनका संरक्षण करना आदी

१२. महासंघ के सदस्य संघों के विकास, उनमे परष्पर समन्वय आदि में सहयोग करना, उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करना एवं हर प्रकार से उन्हें सहायता करना

१३. महासंघ व अधीनस्थ संस्थाओं का पूरा हिसाब रखना, हिसाब का अंकेक्षण करवाना एवं तत्सम्वन्धी व्यय करना

१४. नियम एवं कानून के अनुसार महासंघ से सम्वन्धित सूचनाएं आदि सम्वन्धित विभागों को भेजना, उपयुक्त दस्तावेज आदि तैयार करवाना एवं तत्सम्वन्धी व्यय करना

१५. महासंघ के हित के लिए अन्य संस्थाओं एवं व्यक्तियों आदि से सम्वन्ध बनाना एवं मिलजुल कर कार्य करना

१६. महासंघ का वार्षिक प्रतिवेदन एवं भविष्य की कार्य योजना बनाना  एवं उसे वार्षिक अधिवेशन में प्रस्तुत करना

१७. महासंघ के उद्देश्यों में वर्णित सभी कार्य करना एवं महासंघ, सदस्य संघों, साधु साध्वी श्रावक श्राविकाओं आदि सात क्षेत्रों, तीर्थ, धर्म एवं जिनशासन की उन्नति, विकास, प्रगति एवं प्रभावना के लिए प्रयत्न शील रहना

१८. आवश्यकता एवं नियमानुसार महासंघ के विधान में परिवर्तन, परिवर्धन, संशोधन आदि का प्रारूप तैयार कर उस हेतु बुलाए गए साधारण सभा के अधिवेशन में प्रस्तुत करना

कार्यकारिणी समिति एवं पदाधिकारी 

१. कार्यकारिणी समिति में कुल ५१ सदस्य होंगे जिनमे से प्रतिनिधि सदस्यों में से ३०, संस्थापक सदस्यों में से ३, संरक्षक सदस्यों में से ३, अखिल भारतीय खरतर गच्छ युवा परिषद द्वारा मनोनीत २, अखिल भारतीय खरतर गच्छ महिला परिषद द्वारा मनोनीत २, मनोनीत सदस्यों में से ५, पूज्य गच्छाधिपति द्वारा मनोनीत ३, प्रवर पर्षदा द्वारा मनोनीत २ एवं प पू मोहनलाल जी महाराज के समुदाय-प्रमुख द्वारा मनोनीत १ सदस्य होंगे। इन ५१ सदस्यों में से ही पदाधिकारियों का चुनाव होगा परन्तु अध्यक्ष पद प्रतिनिधि सदस्यों में से ही होगा मनोनीत सदस्यों में से नहीं।

२. पदाधिकारियों में अध्यक्ष के अतिरिक्त ४ उपाध्यक्ष, १ महामंत्री,  २ सह मंत्री, १ कोषाध्यक्ष एवं १ सह कोषाध्यक्ष, १ संगठन मंत्री १ सांस्कृतिक एवं प्रचार प्रसार मंत्री होंगे. अध्यक्ष के अतिरिक्त उपरोक्त सभी पद ४१ सदस्यों में से चुने जा सकेंगे।  इन पदों के अतिरिक्त १ मंत्री,  युवा विभाग व १ मंत्री, महिला विभाग होंगे जिन्हे सम्वन्धित परिषदों द्वारा मनोनीत सदस्यों में से चुना जायेगा।

३. जिस संघ के प्रतिनिधि अध्यक्ष होंगे उसी संघ के प्रतिनिधि सदस्य को उपाध्यक्ष एवं मंत्री पद पर नहीं चुना  जा सकेगा


चुनाव

1. महासंघ के चुनाव सामान्यतः ३ वर्ष की अवधि में होंगे। विशेष परिस्थिति में वार्षिक साधारण सभा को चुनाव स्थगित करने का अधिकार होगा। चुनाव में सभी ४ प्रकार के सदस्यों को मतदान का अधिकार होगा। संस्थापक सदस्य अपने सदस्यों को एवं संरक्षक सदस्य संरक्षक सदस्यों को मनोनीत कर कार्यकारिणी में भेजेंगे। सदस्य संघ के अधिकृत पात्र के आधार पर ही प्रतिनिधि सदस्य अपना नामांकन भर सकेंगे। कोई भी सदस्य संघ ४  प्रतिनिधि सदस्यों को नामांकन के लिए अधिकृत नहि कर सकेगा।

 2. सदस्य संघ द्वारा अधिकृत पत्र होने पर उस संघ के प्रतिनिधि सदस्य को उस संघ के अनुपस्थित सदस्यों का मत देने का भी अधिकार होगा। प्रतिनिधि सदस्यों के अतिरिक्त अन्य सदस्यों को उपस्थित होने पर ही मताधिकार प्राप्त होगा। भारत के बाहर रहनेवाले सदस्य डाक/ रजिस्टर्ड ई-मेल/अन्य प्रमाणिक तरीके के द्वारा अपना मत दे सकेंगे।

3. चुनाव स्थल भारत में कहीं भी हो सकता है परन्तु एक ही स्थान/क्षेत्र पर लगातार दो बार चुनाव नहीं हो सकते हैं. सामान्यतः चुनाव स्थल महासंघ का केंद्रीय अथवा शाखा कार्यालय अथवा कोई विशिष्ट तीर्थ स्थल अथवा जहाँ पर खरतर गच्छ का कोई विशेष कार्यक्रम हो वहां रखा जायेगा। चुनाव हेतु पधारनेवाले सभी सदस्यों के भोजन आवास आदि की उचित व्यवस्था महासंघ द्वारा की जाएगी.

4. महासंघ की कार्यकारिणी  का चुनाव करवाने के लिए कार्यकारिणी समिति एक चुनाव अधिकारी की नियुक्ति करेगी एवं महासंघ के विधान व नियमानुसार निष्पक्ष चुनाव कराने हेतु उनसे स्वीकृति प्राप्त करेगी। चुनाव अधिकारी से परामर्श कर सहायक चुनाव अधिकारीयों की नियुक्ति भी की जा सकेगी। कार्यकारिणी समिति चुनाव सम्वन्धि व्यवस्था में नियुक्त चुनाव अधिकारी को पूर्ण सहयोग प्रदान करेगी एवं तत्सम्वन्धी व्यय भार वहन करेगी

५. चुनाव के लिए कार्यकारिणी एक चुनाव कार्यक्रम भी तैयार करेगी, सभी आवश्यक दिशा निर्देश देगी एवं उसे सदस्यों को सूचित करेगी। चुनाव कार्यक्रम बनाने में आवश्यकतानुसार चुनाव अधिकारी की सहायता एवं सलाह ली जा सकती है.

६. आवश्यकता होने पर संघ का चुनाव गुप्त मतदान प्रक्रिया से होगा। चुनाव के सम्वन्ध में साधारणतः प्रचलित  प्रणालियां आवश्यकतानुसार लागु होंगे। निष्पक्ष चुनाव हेतु सभी प्रकार की व्यवस्था करने का उत्तर् दायित्व चुनाव अधिकारी का होगा एवं इस विषय पर उन्हें सभी प्रकार के योग्य अधिकार प्राप्त होंगे। चुनाव सम्वन्धि किसी भी विवाद में चुनाव अधिकारी का निर्णय सर्वोपरि, अंतिम एवं सर्वमान्य होगा।

पदाधिकारियों के कर्तव्य व अधिकार

१. अध्यक्ष

क. महासंघ के अध्यक्ष के रूप में कार्यकारिणी व साधारण सभा की अध्यक्षता करना एवं उक्त बैठकों का संचालन करना। साधारण सभा व कार्यकारिणी की सभाओं का सञ्चालन करते समय सभा में शांति कायम करना, नियम विरुद्ध/ अनुचित कार्यवाही को रोकना, वक्ताओं को बोलने की अनुमति देना, उपस्थित किये गए प्रस्तावों पर मत लेना, सामान मत आने पर अपना निर्णायक मत देना

ख. महसंघ के समस्त कार्यों की जिम्मेदारी से देखरेख एवं निगरानी करना, पदाधिकारियों, कार्यकारिणी सदस्यों, अन्य सदस्यों आदि को आवश्यक दिशानिर्देश एवं मार्गदर्शन देना। विशेषकर महासंघ के मंत्री से निरन्तर संपर्क बनाए रखना एवं उन्हें दिशानिर्देश प्रदान करना

ग. प पू गच्छाधिपति एवं अन्य साधु-साध्वियों से संपर्क बनाए रखना एवं उनसे मार्गदर्शन व दिशा निर्देश प्राप्त करना एवं उससे महासंघ को अवगत कराना। समय समय पर पूज्यवरों को महासंघ की गतिविधियों से अवगत कराना

घ. सदस्य संघों, खरतर गच्छ के अतिरिक्त अन्य आम्नाय वाले जैन संघों अदि से संपर्क में रहना, उनसे परष्पर विचार विमर्श करना, समन्वय व सौहार्द बनाए रखने का प्रयास करना, खरतर गच्छ के गौरव को बढ़ाने का प्रयास करना

ङ्. आकस्मिक आवश्यकता बजट के अतिरिक्त एक लाख रुपये तक खर्च की स्वीकृति देना।  कार्यकारिणी इस राशि को समय समय पर संशोधित कर सकेगी।

उपाध्यक्ष

क. अध्यक्ष की अनुपस्थिति में कार्यकारिणी एवं साधारण सभा की बैठकों का अध्यक्ष की भांति सञ्चालन करना

ख. अध्यक्ष के कार्य में सहयोग देना

ग. अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उनकी अनुमति से अध्यक्ष के सारे कार्य करना।

महामंत्री

क. महासंघ के नाम से किये गए सभी कार्य मुख्य रूप से महामंत्री द्वारा किये जायेंगे।  महासंघ के परिचालन का उत्तरदायित्व महामंत्री पर होगा।

ख.  महासंघों के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एवं साधारण सभा व कार्यकारिणी द्वारा लिए गए निर्णयों की अनुपालना करवाने के लिए किये जानेवाले सभी को करने का अधिकार महामंत्री को होगा

ग. साधारण सभा एवं कार्यकारिणी की बैठकें बुलाना, कार्यवाही का सञ्चालन करना, स्वीकृति हेतु प्रस्ताव रखना, नियमानुसार कार्यवाही पुस्तिका लिखना, उसे आगामी बैठक में प्रस्तुत करना व  स्वीकृति लेना

घ. साधारण सभा एवं कार्यकारिणी की बैठकों में लिए गए निर्णयों को क्रियान्वित करने का प्रवन्ध करना, उक्त कार्यों की निगरानी करना, कार्य निष्पादन से सम्वन्धित प्रतिवेदन प्रस्तुत करना

ङ्. व्यय राशि के भुगतान की स्वीकृति देना

च. महासंघ के अन्य पदाधिकारियों, कार्य समिति सदस्यों, उपसमितियों आदि के कार्यों का सञ्चालन, देखरेख आदि करना एवं आवश्यक मार्गदर्शन देना एवं उनमे परष्पर समन्वय बनाये रखना

छ.  दस्तावेज, अभिलेख आदि बनाना एवं उन्हें सुरक्षित रखना, उपयुक्त स्थान पर उन्हें प्रस्तुत करना। वार्षिक प्रतिवेदन एवं करयोजना बनाना। महासंघ की ओर से आवश्यक पत्रव्यवहार आदि करना।

ज. महासंघ के पदाधिकारियों, कार्यसमिति सदस्यों में कार्यों का वितरण करना, उन्हें उपयुक्त अधिकार देना, एवं कार्यनिष्पादन हेतु उपयुक्त व्यक्ति, संस्था, समिति आदि की नियुक्ति करना

झ. बजट के अतिरिक्त पचास हज़ार रुपये तक के व्यय की स्वीकृति देना। इस राशि में भी कार्यकारिणी समिति संशोधन कर सकती है

सह मंत्री

क. महामंत्री की अनुपस्थिति में उनके दायित्व का निर्वहन करना

ख. महामंत्री के कार्यों में सहयोग देना

ग. कार्यसमिति, अध्यक्ष अथवा महामंत्री द्वारा दिए गए कार्यों का निष्पादन करना विशेषतः उपसमितियों के कार्यों की देखरेख करना

(दो सहमंत्री होने के कारन उनमे आपस में कार्य विभाजन होना आवश्यक है अतः महामंत्री को दोनों के कार्यों का विभाजन करने का अधिकार होगा एवं अध्यक्ष की सलाह से वे यह कार्य करेंगे)

कोषाध्यक्ष

क. महासंघ के आय-व्यय आदि का हिसाब किताब रखना एवं तत्सम्वन्धी सभी व्यवस्था करना। आय-व्यय का समुचित प्रवंधन करना

ख. स्वीकृत बजट के अनुसार खर्च करना उससे अधिक खर्च की सम्भावना होने पर नियमानुसार उपयुक्त स्वीकृति लेना

ग. बैंक खातों का सञ्चालन करना एवं चेकों पर अनिवार्य रूप से हस्ताक्षर करना

घ.  बिल, वाउचर आदि का मिलान कर स्वीकृति देना, समय पर भुगतान की व्यवस्था करना

ङ्. महासंघ के आय वृद्धि की व्यवस्था करना

च. गत वर्ष के आय-व्यय का पूरा व्यौरा तैयार करना, अंकेक्षण करवाना, आगामी वर्ष का बजट तैयार करना एवं इन सभी को कार्यकारिणी में पेश कर स्वीकृत करना एवं साधारण सभा के वार्षिक अधिवेशन में प्रस्तुत करना। कार्यकारिणी एवं साधारण सभा के वार्षिक अधिवेशन में अंकेक्षक का नाम एवं उसकी फीस प्रस्तावित करना

सह-कोषाध्यक्ष

क. कोषाध्यक्ष के कार्यों में सहयोग करना

ख. कोषाध्य्क्ष की अनुपस्थिति में उनके कार्य करना

सांस्कृतिक एवं प्रचार प्रसार मंत्री

क. महासंघ द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करना, कार्यक्रम की व्यवस्था करना

ख. सदस्य संघों द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों, पर्व-उत्सव- महोत्सव आदि में सहयोग करना एवं मार्गदर्शन प्रदान करना

ग. शिविर, शैक्षणिक सत्र आदि का आयोजन करना, करवाना एवं सहयोग करना

घ. सामाजिक कुरीतियों को दूर करने की योजना बना कर उस पर कार्य करना

ङ्. महासंघ एवं सदस्य संघों की गतिविधियों का प्रचार प्रसार करना, इस हेतु से प्रचार सामग्री जैसे आमंत्रण पत्रिका, पम्फ्लेट, बैनर, पोस्टर आदि तैयार करवाना। डिजिटल एवं इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से प्रचार प्रसार करना

च. संघ के सभी अंगों से संपर्क बनाए रखना, उनकी गतिविधियों के समाचार प्राप्त करना एवं उसका प्रसार करना। इस हेतु से विभिन्न समाचार माध्यमों से संपर्क वनाए रखना

संगठन मंत्री

क. संगठन को मज़बूत बनाने का प्रयास करना

ख. सदस्य संघों, युवा एवं महिला परिषदों के सगठनों को मजबूत करने हेतु मार्गदर्शन देना, उनके लिए कार्य योजना बनाना, उनके कार्यों में सहायता करना

ग. संगठन की मज़बूती के लिए उपयुक्त डेटाबेस बनाना

घ. नए संघों को महासंघ से जोड़ना

मंत्री युवा विभाग

क. अखिल भारतीय खरतर गच्छ युवा परिषद की गतिविधियों के सञ्चालन में सहायता करना, एवं उन्हें मार्गदर्शन देना

ख. युवा परिषद की गतिविधियों से महासंघ को अवगत कराना

ग. साधु-साध्वी वैयावच्च की व्यवस्था करना

घ. युवाओं के धार्मिक, सामाजिक, चारित्रिक, नैतिक, शैक्षिक, आर्थिक, शारीरिक, मानसिक विकास आदि एवं युवा शक्ति की उन्नति हेतु कार्य योजना बनाना, उसे कार्य समिति में अनुमोदन हेतु प्रस्तुत करना



मंत्री महिला विभाग

क. अखिल भारतीय खरतर गच्छ महिला परिषद की गतिविधियों के सञ्चालन में सहायता करना, एवं उन्हें मार्गदर्शन देना

ख. महिला परिषद की गतिविधियों से महासंघ को अवगत कराना

ग. साधु-साध्वी विशेषकर साध्वी भगवंतों की वैयावच्च की व्यवस्था करना

घ. महिलाओं के धार्मिक, सामाजिक, चारित्रिक, नैतिक, शैक्षिक, आर्थिक, शारीरिक, मानसिक विकास आदि एवं महिला शक्ति की उन्नति हेतु कार्य योजना बनाना, उसे कार्य समिति में अनुमोदन हेतु प्रस्तुत करना

महासंघ के विधान में संशोधन

....... संस्था पंजीकरण अधिनियम ....... की धारा ......... के अनुसार

१. इस महासंघ के नाम, उद्देश्य व विधान में संशोधन, परिवर्तन, परिवर्धन महासंघ की उस साधारण सभा की बैठक में किया जा सकेगा जो उस निमित्त बुलाई गई हो और उस बैठक में महासंघ के कुल सदस्यों में से कम से कम  ३० प्रतिशत सदस्य उपस्थित हों. उपस्थित सदस्यों में से दो तिहाई सदस्यों के द्वारा संशोधन, परिवर्तन, परिवर्धन स्वीकार किया जाने पर ही उक्त संशोधन, परिवर्तन, परिवर्धन होना माना जाएगा।

२. जब कभी कोई संशोधन, परिवर्तन, परिवर्धन हो तो उसकी सुचना रजिस्ट्रार ऑफ़ सोसाइटीज ..........  को देना अनिवार्य होगा एवं सुचना देने की जिम्मेदारी महामंत्री की होगी.

३. महासंघ का नाम परिवर्तन होने पर महासंघ के अधिकार व उत्तरदायित्व अप्रभावित रहेंगे। महासंघ द्वारा एवं उसके विरुद्ध चल रही कार्यवाही भी इससे अप्रभावित रहेगी. महासंघ के पूर्व नाम से जो कानूनी कार्यवाही आरम्भ की जा सकती थी या जारी राखी जा सकती थी, अथवा उसके विरुद्ध की जा सकती थी वो नवीन परिवर्तित नाम से प्रारम्भ या जारी रखी जा सकेगी या इसके विरुद्ध हो सकेगी।

 महासंघ का विघटन

....... संस्था पंजीकरण अधिनियम ....... की धारा ......... के अनुसार

१. इस महासंघ का विघटन इस महासंघ की उस साधारण सभा की बैठक में किया जा सकेगा जो उस निमित्त बुलाई गई हो और उस बैठक में महासंघ के कुल सदस्यों में से कम से कम  दो तिहाई सदस्य उपस्थित हों. उपस्थित सदस्यों में से तीन चौथाई सदस्यों के द्वारा विघटन का प्रस्ताव पारित हो जाने पर ही महासंघ का विघटन होना माना जाएगा।

२.  इस महासंघ के विघटन का प्रस्ताव पारित हो जाने के साथ ही उक्त सभा में एक संचालन समिति की नियुक्ति की जाएगी  महासंघ के विघटन की कार्यवाही की देखरेख करेगी व उपखण्ड (  ) के अनुसार व्यवस्था होने तक विघटित महासंघ की व्यवस्था व कार्य सञ्चालन करेगी।

३.  इस महासंघ के विघटन होने पर महासंघ की सारी संपत्ति खरतर गच्छ आम्नाय के किसी अन्य संघ/ संस्था को सौंप दी जायेगी अथवा संघों/संस्थाओं में वितरित कर दी जाएगी। इस हेतु निर्णय भी उक्त सभा में ही ले लिया जायेगा। महासंघ के विघटन होने पर महासंघ की संपत्ति किसी भी परिस्थिति में संघ के सदस्यों में या व्यक्ति विशेष में वितरित नहीं की जा सकेगी.

निरीक्षण

रजिस्ट्रार संस्था  ......... को इस महासंघ के निरीक्षण का अधिकार होगा।



परिशिष्ट

 अनादिकालीन जिनशासन में इस अवसर्पिणी काल में प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभ देव (आदिनाथ) से लेकर श्रमण भगवान् महावीर तक २४ तीर्थंकर हुए. भगवान् महावीर के पंचम गणधर श्री सुधर्मा स्वामी उनके पट्ट पर विराजमान हुए. भगवान् महावीर के समय से ही उनके श्रमण संघ में ९ गण थे जिनमे सिद्धांतों की अभिन्नता होते हुए भी समाचारी की विभिन्नता थी. अपने अपने गण की समाचारी का पालन करते हुए सभी एक ही मोक्ष मार्ग की आराधना करते थे.

भगवान् महावीर के पंचम गणधर श्री सुधर्मा स्वामी उनके पट्ट पर विराजमान हुए. उनके बाद जम्बू स्वामी पट्ट पर विराजित हुए. ये दोनों पटधर केवलज्ञानी एवं मोक्षगामी हुए. उनके बाद श्रुत केवलियों की परंपरा चली, भगवान् महावीर के सप्तम पट्टधर श्री भद्रबाहु स्वामी अंतिम श्रुत केवली का महावीर निर्वाण के १७० वर्ष बाद देवलोक गमन हुआ. इसके बाद १० पूर्वधरों की परंपरा प्रारम्भ हुई एवं सुस्थित सूरी ने एक करोड़ सूरी मंत्र का जप किया, तबसे कोटिक गण प्रसिद्द हुआ. श्री वज्र स्वामी अंतिम दस पूर्वधर हुए. उस समय से भगवन महावीर की पट्ट परंपरा में वज्र शाखा प्रसिद्द हुई.  अत्यन्त तेजस्वी चन्द्र सूरी के उपरांत यह चन्द्र कुल कहलाने लगा.

जिनशासन में समय समय पर अनेक शाखाएं निकली जिनमे मुख्यतः तीन परम्पराएं थी १. श्वेताम्बर २. दिगंबर ३. यापनीय: इनमे से यापनीय परंपरा का लोप होने के बाद अभी १. श्वेताम्बर व २. दिगंबर दो धाराएं विद्यमान है.

कल्पसूत्र स्थविरावली के अनुसार श्वेताम्बर परंपरा में समय समय पर अनेक गण, शाखाएं, कुल आदि हुए. भगवान् महावीर के ९८० वर्षों के बाद देवर्धि गणी क्षमाश्रमण के नेतृत्व में आगमों को लिपिवद्ध किया गया तब तक की परंपरा स्थविरावली में प्राप्त होती है.

आगे चल कर कोटिक गण, वज्र शाखा में बृहद गच्छ प्रसिद्द हुआ जो की सभी गच्छों में नाम के अनुरूप सबसे बड़ा था. इसी बृहद गच्छ में महप्रभाविक उद्योतन सूरी हुए जिनके प्रमुख शिष्य वर्द्धमान सूरी के प्रमुख शिष्य जिनेश्वर सूरी हुए.

जिन शासन की मुख्य धारा के अतिरिक्त शिथिलाचारियों की भी एक धारा समानान्तर रूप से करीब ६-७ सौ वर्षों से चली आ रही थी एवं चैत्यवासियों की यह परम्परा भी जिनेश्वर सूरी के समय तक समाज में अपनी गहरी जड़ें जमा चुकी थी.

एक बार ग्रामानुग्राम विहार करते हुए जिनेश्वर सूरी गुजरात की राजधानी पाटन पधारे. वहां के राजा  चैत्यवासियों के अनुयायी थे. वहां  जिनेश्वर सूरी को कोई भी रहने के लिए स्थान देने को तैयार नहीं हुआ तब बहुत मुश्किल से वहां के राजपुरोहित ने उन्हें अपनी घुड़साल में रहने का स्थान दिया। उस समय  चैत्यवासी आचार्य ने इसकी शिकायत राजा से कर दी तब राज पुरोहित के अनुरोध पर राजा ने उनसे मुलाक़ात की एवं उनके त्याग तप से अत्यन्त प्रभावित हुए.

अगले दिन जिनेश्वर सूरी एवं चैत्यवासी आचार्य के बीच राजसभा में वाद-विवाद प्रारम्भ हुआ एवं इसमें वसतिवासी आचार्य जिनेश्वर सूरी का सुविहित पक्ष विजयी घोषित हुआ.उस समय (विक्रम संवत १०७५) गुजरात के महाराजा दुर्लभ राजा ने जिनेश्वर सूरी को आप "खरे" अर्थात सच्चे हैं ऐसा कहते हुए उन्हें "खरतर" विरुद प्रदान किया। कालांतर में बृहद गच्छ का यह समुदाय खरतर गच्छ के नाम से प्रसिद्द हुआ.

अपने स्थापना काल से ही खरतर गच्छ जिन शासन की अभूतपूर्व सेवा करता रहा है. इस गच्छ में अनेक प्रभाविक महापुरुष हुए जिन्होंने अनेक प्रकार से जिनशासन की सेवा की. जिनेश्वर सूरी के ही शिष्य जिन चन्द्र सूरी ने वैराग्योत्पादक " संवेग रंगशाला" नाम की  अद्भुत ग्रन्थ की रचना की तो पट्ट परंपरा में अभयदेव सूरी ने जय तिहूअण स्तोत्र  की रचना कर स्तम्भन पार्श्वनाथ प्रगट किया जिसके स्नात्र जल से उनका कुष्ठ रोग दूर हो गया. तत्पश्चात उन्होंने स्थानांग, समवायांग, भगवती आदि नव अंगों की टीका की रचना की. अभयदेव सूरी के शिष्य जिन वल्लभ सूरी भी महप्रभाविक हुए जिन्होंने संघ पटक आदि महँ ग्रंथों की रचना की एवं मरू प्रदेश में जिन धर्म की महती प्रभावना की.

जिन वल्लभ सूरी के पट्ट पर महाप्रभाविक जिन दत्त सूरी हुए जिन्हे अम्बिका देवी ने युगप्रधान पद प्रदान किया। अपने चारित्र वल से १३०००० नवीन जैन बना कर एवं सैकड़ों गोत्रों की स्थापना कर उन्होंने  ऐसा काम किया की लोग उन्हें " दादा गुरु" के नाम से सम्वोधित करने लगे. आप ही के सुयोग्य शिष्य दिल्लीश्वर मदनपाल को प्रतिवोध करनेवाले द्वितीय दादा जिन चन्द्र सूरी हुए. मस्तक पर दुर्लभ नरमणि होने के कारण वे मणिधारी भी कहलाए।

५० हज़ार नूतन जैन बनाने वाले, अनेकों ग्रंथों के रचनाकार, भक्तों के मनोवांछित पूर्ण करनेवाले तीसरे दादा जिन कुशल सूरी हुए. इसके अतिरिक्त बादशाह मुहम्मद विन तुग़लक़ को  प्रतिवोध देनेवाले, विधिप्रपा जैसे महान ग्रंथों के रचनाकार जिनप्रभ सूरी, जिनपतिसुरी आदि महान आचार्यों ने इस गच्छ की परंपरा को सुशोभित किया। उपाध्याय सधुकीर्ति महान विद्वान एवं संगीत के विशेषज्ञ थे. ४५० वर्ष पूर्व आपके द्वारा रचित सत्रह भेदी पूजा भारतीय शास्त्रीय संगीत का बेजोड़ उदहारण है तथा सभी पूजाओं में सबसे प्राचीन है. इसके बाद बादशाह अकबर प्रतिवोधक चौथे दादा जिन चन्द्र सूरी हुए जिनके शिष्य मह विद्वान उपाध्याय समयसुन्दर ने एक वाक्य के आठ लाख अर्थ कर "अनेकार्थ मञ्जूषा" ग्रन्थ की रचना की. कीर्ति रत्न सूरी ने नाकोड़ा तीर्थ की प्रतिष्ठा करवाई।

खरतर गच्छ की महान परंपरा में इसके बाद अद्भुत योगी आनंदघन जैसे हुए जिनकी पदावली एवं चौबीसी सभी जैन संप्रदाय में सामान रूप से मान्य है. उनके कुछ समय बाद ही अध्यात्म योगी महान विद्वान श्रीमद देवचंद हुए जिनकी चौबीसी भी आनंदघन चौबीसी के सामान ही लोकप्रिय है.  श्रीमद देवचंद ने सैकड़ों की संख्या में आध्यात्मिक, दार्शनिक, भक्तिपरक साहित्य की रचना की. आपने शत्रुंजय तीर्थ पर एक कारखाना स्थापित करवाया जो बाद में आनंद जी कल्याण जी की पेढ़ी के नाम से प्रसिद्द हुआ.

 समानान्तर रूप से साधु परंपरा एवं यति परंपरा भी चलती रही जिसमे जिन सौभाग्य सूरी, कीर्ति सूरी, जिन रंग सूरी, कल्याण सूरी, विजयेंद्र सूरी आदि प्रभाविक श्रीपूज्य हुए. कालक्रम से खरतर गच्छ में भी शिथिलाचार बढ़ा और समय समय पर क्रियोद्धार भी हुआ. इसी क्रम में उपाध्याय क्षमाकल्याण ने भी क्रियोद्धार कर साधु धर्म को वल प्रदान किया।  उन्ही की परंपरा में गणाधीश सुखसागर हुए जिन्होंने क्रियोद्धार कर साधु धर्म की सुविहित परम्पर को स्वीकार किया। आज भी खरतर गच्छ में मुख्य रूप से उन्ही का समुदाय विद्यमान है. सुखसागर समुदाय के अतिरिक्त कृपा चन्द्र सूरी एवं मोहनलाल समुदाय भी विद्यमान है.

सुखसागर समुदाय में त्रिलोक्यसागर, छगन सागर, हरी सागर, आनंदसागर, कवींद्रसागर, उदय सागर, कान्तिसागर, महोदय सागर, कैलाश सागर आदि गणनायक आचार्य हुए. इसके अतिरिक्त प्रवर्तिनी पुण्य श्री, ज्ञान श्री, गुप्ती श्री, प्रमोद श्री, अनुभव श्री, विचक्षण श्री, सज्जन श्री, छत्तीसगढ़ रत्न शिरोमणि मनोहर श्री आदि साध्वी बृन्दों की विशिष्ट परंपरा रही.

खरतर गच्छ को आलोकित करने में श्रावक समुदाय का भी भरपूर योगदान रहा है. अलाउद्दीन खिलजी के राज जोहरी प्रसिद्द विद्वान एवं रत्न परीक्षा ग्रन्थ के रचनाकार ठक्कुर फेरु, कश्मीर के राज जोहरी पन्नालाल फांफु, अकबर दरबार में मंत्री पद से विभूषित कर्मचंद बच्छावत, शत्रुंजय तीर्थ का उद्धार करनेवाले कर्मा शाह दोसी, गिरिराज पर विशाल जी मंदिर का निर्माण करवाने वाले मोती शाह, रत्नमय चौबीसी का निर्माण करवा कर अक्षय यश प्राप्त करनेवाले हरख चन्द गोलेच्छा, विश्व प्रसिद्द पारसनाथ मंदिर, कोलकाता के निर्माण कर्ता राय बद्रीदास बहादुर मुकीम, हैदराबाद के थानमल लुनिया, जैसलमेर की पटवा हवेली के बाफना, चेन्नई के लालचंद ढड्ढा, गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष सर्वोदयी पूर्ण चन्द्र टुंकलिया, स्वतंत्र भारत में मध्य प्रदेश के मुख्य्मंत्री सुंदरलाल पटवा, सर्वोच्च न्यायलय के न्यायाधीश माननीय रणधीर सिंह बच्छावत, फूटबल के अंतर्राष्ट्रीय खिलाडी दिलीप कोठारी व बहादुर सिंह बोथरा, बिलियर्ड्स के विश्व चैंपियन मनोज कोठारी, भटनागर पुरष्कार से सन्मानित वैज्ञानिक विमल बच्छावत आदि अनेक श्रावकों ने खरतर गच्छ की जय पताका को  ऊँचा फहराया है.

जिन कान्तिसागर सूरी के शिष्य वर्त्तमान खरतर गच्छाधिपति मणिप्रभ सागर सूरी के पदारोहण एवं खरतर गच्छ साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका महांसम्मलेन  के अवसर पर विशाल साधु साध्वी समुदाय एवं देश भर से पधारे हुए २० हज़ार खरतर गच्छीय अनुयायियों के मध्य इस महासंघ को बनने का निर्णय हुआ जिसकी मांग लम्बे समय से चली आ रही थी.

Wednesday 6 April 2016

Establishing International Federation of Khartar Gachchh


Establishing International Federation of Khartar Gachchh

Khartar Gachchh is the oldest clan among all Shwetambar Jain communities. Durlabh Raj, King of Pattan in Gujrat, awarded Sri Jineshwar Suri with a title of Khartar in his court.  Sri Jineshwar Suri, a true Jain ascetic proved his ascetic path as a true Jain path. One thousand years past, since then, Khartar Gachchh is maintaining its dignity after several ups and downs.

Khartar Gachchh has spread its wings globally over the period. The community needs an organization that will represent all Khartar Gachchh Sangh situated across the globe, Driven by the cause, we are moving to the direction of  Establishing International Federation of Khartar Gachchh.

We have blessings of Sri Jin Maniprabh Sagar Surishwar Ji Maharaj, present Khartar Gachchhadhipati and large numbers of ascetics: and support of thousands of followers of the said Gachchh.

Jyoti Kothari